पाठ 218: इस जीवन में भी वापस भगवान के पास?

भगवद्गीता 8.19 के अपने तात्पर्य में श्रील प्रभुपाद कहते हैं:
“किन्तु जो बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णभावनामृत स्वीकार करते हैं, वे इस मनुष्य जीवन का उपयोग भगवान् की भक्ति करने में तथा हरे कृष्ण मन्त्र का कीर्तन में विताते हैं। इस प्रकार वे इस जीवन में कृष्णलोक को प्राप्त होते हैं और वहाँ पर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त होकर सतत आनन्द का अनुभव करते हैं।”

जब श्रील प्रभुपाद कहते हैं “इस जीवन में” उनका क्या मतलब है? क्या उनका यह अर्थ है कि भक्त अपने भौतिक शरीर के साथ बाह्य रूप से स्थित रहते हुए भी अपने हृदय के भीतर कृष्णलोक में प्रवेश करता है? या क्या उसका मतलब है कि इस जीवन के अंत में भक्त भगवद्धाम वापस चला जाता है? या उसका मतलब दोनों है?

उत्तर की तलाश में हम श्रीमद्भागवतम् 2.2.30 के तात्पर्य में पाते हैं:
“ऐसा करने पर भक्त को भगवत्प्रेम-रूपी फल चखने को मिलता है और वह अपने इसी जीवन में भगवान्‌ कृष्ण के साथ रह सकता है तथा पग-पग पर भगवान्‌ के दर्शन कर सकता है।
जीवन की सर्वोच्च सिद्धि है भगवान्‌ की सतत संगति में जीवन का निरन्तर सुख भोगना और जिसने इसका स्वाद चख लिया है, वह किसी और तरीके से भौतिक जगत के किसी क्षणिक भोग की कामना नहीं करता।”

और श्रीमद्भागवतम् 4.29.65 के तात्पर्य में भी:
“यदि कोई व्यक्ति भगवान्‌ की भक्ति में लगा रहता है, तो समझना चाहिए कि वह इसी जीवन में मुक्त हो चुका है।”

निष्कर्ष यह है कि हर पल कृष्ण के साथ रहना संभव है। शुद्ध भक्त अपने वर्तमान शरीर को त्यागने से पहले ही इस जीवन में भी भगवान के पास वापस आ जाता है। यही कारण है कि श्रील प्रभुपाद भगवद-गीता 8.15 के अपने तात्पर्य में इस प्रकार कहते हैं:

“महात्मा अनुभवसिद्ध भक्तों से दिव्य सन्देश प्राप्त करते हैं और इस प्रकार वे धीरे-धीरे कृष्णभावनामृत में भक्ति विकसित करते हैं और दिव्यसेवा में इतने लीन हो जाते हैं कि वे न तो किसी भौतिक लोक में जाना चाहते हैं, यहाँ तक कि न ही वे किसी आध्यात्मिक लोक में जाना चाहते हैं। वे केवल कृष्ण तथा कृष्ण का सामीप्य चाहते हैं, अन्य कुछ नहीं।”

इस सप्ताह के लिए कार्य

भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 8, श्लोक 19 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
कोई भक्त इस जीवन में भी कृष्ण के साथ कैसे हो सकता है?

अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com

(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)