हम कैसे इच्छा करते हैं यह हमारी चेतना को आकार देता है और हमारे भविष्य को निर्धारित करता है। इच्छाओं के अनुसार हमारा भविष्य बिगड़ेगा, वैसा ही रहेगा, या सुधरेगा। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति इस कला को सीखता है और उसमें महारत हासिल करता कि कैसे ऐसी इच्छा करे की सर्वश्रेष्ठ भविष्य प्राप्त करना संभव हो जाए। वह इस तरह से इच्छा करना सीखता है कि वह इस भौतिक संसार में फिर से जन्म न ले। वह इस तरह से इच्छा करता है कि वह आध्यात्मिक जगत में अपने मूल आध्यात्मिक स्वरूप को पुनः प्राप्त कर ले। इसका मतलब यह है कि वह अपनी सभी इच्छाओं को एक इच्छा और केवल एक इच्छा में समा देता है, हर समय, स्थान और परिस्थितियों में अपने हर विचार, शब्द और कर्म से कृष्ण को हमेशा पूरी तरह से प्रसन्न करना। यह इच्छा की पूर्णता है। यह व्यक्ति को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण के असीमित रूपों में से किसी एक के सीधे, निरंतर संपर्क में लाता है।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 8, श्लोक 16 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
इच्छा इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)