हमारी चेतना उस संग के अनुसार विकसित होती है जिसे हम रखते हैं। यदि हम पियक्कड़ से जुड़ते हैं, तो हम शराबी बन जाते हैं। यदि हम अभक्तों का संग करते हैं, तो हमारी सुप्त कृष्णभावनामृत जागृत नहीं होगी। और अगर हम कृष्ण के महान भक्तों के साथ जुड़ते हैं, तो हम भी कृष्ण के महान भक्त बन जाएंगे, दूसरे शब्दों में हम कृष्ण के शुद्ध भक्त बन जाएंगे। इसलिए हमें भगवद-गीता में सिखाए गए सिद्धांतों के आधार पर बहुत समझदारी से अपनी संगति चुननी चाहिए। हमें केवल कुछ अस्थायी शारीरिक भावनाओं के कारण गैर-भक्तों के साथ जुड़ने के लिए बाध्य महसूस नहीं करना चाहिए। हमारी ऐसी भावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। तो ऐसी भावनाओं का क्या करें? उत्तर सरल है। हम उन लोगों को कृष्णभावनाभावित बनाने का प्रयास कर सकते हैं जिनसे हम जुड़े हुए हैं। अगर हम वास्तव में उनसे प्यार करते हैं, तो हम नहीं चाहेंगे कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में सड़ते रहें। हम चाहते हैं कि वे वापस भगवत् धाम जा सके।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 7, श्लोक 28 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
महान भक्तों की संगति हमें मोह से कैसे बचाती है?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)