पाठ 193: भगवान के लिए निराकार होना असंभव है

ऐसे मूर्ख मत बनो जो मूर्खतापूर्वक यह अनुमान लगाता है कि भगवान निराकार है। क्यूँकि वे सर्वोच्च हैं, आप उनसे किसी भी तरह से बेहतर नहीं हो सकते है। इसलिए चूंकि आपके पास एक रूप है, इसलिए यह संभव नहीं है कि उनका कोई रूप न हो। अगर यह सच होता, तो आप उनसे बेहतर हो जाएँगे, जो संभव नहीं है। तथ्य यह है कि आपके पास एक रूप है यह साबित करता है कि आपके मूल या स्रोत का एक रूप है। इसे कैसे समझें? यदि आपके पास सोने की अंगूठी है, तो यह स्वतः ही समझ में आ जाता है कि जिस खदान से आपकी सोने की अंगूठी निकाली गई थी, उसमें भी सोना अवश्य ही होना चाहिए। नहीं तो उसमें से सोना कैसे निकल सकता था? चूँकि सब कुछ भगवान से उत्पन्न होता है और रूप मौजूद है, इसलिए भगवान में भी रूप होना चाहिए। इस प्रकार उसका निराकार होना असंभव है।

इस सप्ताह के लिए कार्य

भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 7, श्लोक 24 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
भगवान का निराकार होना कैसे संभव नहीं है?

अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com

(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)