ईश्वर के बारे में जानना वाकई अद्भुत है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि जब तक आप उनके प्रति अपने प्रेम की भावनाओं को नहीं जगाते, तब तक आप अपूर्ण रहेंगे। जिस प्रकार आप किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में जानते होंगे, उसके बारे में बहुत सी बातों से परिचित होंगे, लेकिन उससे व्यक्तिगत रूप से मिले बिना आप वास्तव में उसे नहीं जान सकते। उसी तरह बिना ईश्वर से प्रेम किए आप ईश्वर के बारे में जान सकते हैं लेकिन वास्तव में आप ईश्वर को नहीं जान पाएंगे। इसलिए जब तक आप उनके प्रति अपने प्रेम की भावनाओं को नहीं जगाते, तब तक वे आपसे दूर ही रहेंगे। तो आप इस मूल प्रेम को कैसे पुनर्जीवित कर सकते हैं, जो आपके दिल में सो रहा है? आपने कृष्ण के शुद्ध भक्त, उस व्यक्ति का आश्रय और मार्गदर्शन लेना होगा जिसने अपने हृदय में भगवान के शुद्ध प्रेम को जगाया है। इस तरह वह आपको प्रशिक्षित कर सकते है कि कैसे भगवान के अपने प्रेम को पुनर्जीवित किया जाए, और उस समय आप कृष्ण या भगवान से व्यक्तिगत रूप से आमने सामने मिलेंगे।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 7, श्लोक 19 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
ईश्वर को जानने और ईश्वर के बारे में जानने में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)