यदि कोई ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है, तो उसके हृदय में विराजमान भगवान उसे सारी बुद्धि देता है कि वह ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकता है। बस उसे ईमानदार होना है। बस इतना ही। इस संबंध में श्रील प्रभुपाद भगवद-गीता 5.15 के अपने तात्पर्य में बताते हैं:
“भगवान् मनुष्य की योग्यता के अनुसार उसकी इच्छा का पुरा करते हैं – आपन सोची होत नहिं प्रभु सोची तत्काल। अतः व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पुरा करने में सर्वशक्तिमान नहीं होता। किन्तु भगवान् इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। वे निष्पक्ष होने के कारण स्वतन्त्र अणुजीवों की इच्छाओं में व्यवधान नहीं डालते। किन्तु जब कोई कृष्ण की इच्छा करता है तो भगवान् उसकी विशेष चिन्ता करते हैं और उसे इस प्रकार प्रोत्साहित करते हैं कि भगवान् को प्राप्त करने की इच्छा पूरी हो और वह सदैव सुखी रहे।”
हमें भगवान श्रीकृष्ण की इस विशेष कृपा का लाभ उठाना चाहिए और इस प्रकार सभी प्रकार से सदा प्रसन्न रहना चाहिए।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 7, श्लोक 10 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
ऐसा क्यों है कि हम हर चीज के लिए पूरी तरह से कृष्ण पर निर्भर हैं?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)