इस भौतिक संसार में हम ऐसे व्यक्तियों से आकर्षित होते हैं जिनके पास ये छह प्रकार के ऐश्वर्य होते हैं: शक्ति, सौंदर्य, त्याग, ज्ञान, धन और प्रसिद्धि। लेकिन हम कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं खोज पाते हैं जो इन सभी छह ऐश्वर्यों से परिपूर्ण हो। दूसरे शब्दों में हम ऐसा व्यक्ति नहीं खोज सकते जिसके पास असीमित शक्ति, सौंदर्य, त्याग, ज्ञान, धन और प्रसिद्धि हो। इस भौतिक संसार में प्रत्येक व्यक्ति के पास सीमित मात्रा में ही ये ऐश्वर्य हैं। इस प्रकार हम अपने संग में कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होते हैं। लेकिन एक व्यक्ति है जिसके पास ये सभी ऐश्वर्य पूर्ण हैं और इस प्रकार हमें पूरी तरह से संतुष्ट कर सकते हैं। वह व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण हैं। तो हम उनकी संगति कैसे प्राप्त कर सकते हैं? नारद पंचरत्न में इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है:
दिक्कालाद्यनवच्छिन्ने कृष्णे चेतो विधाय च |
तन्मयो भवति क्षिप्रं जीवो ब्रह्मणि योजयेत् ||
“देश-काल से अतीत तथा सर्वव्यापी श्रीकृष्ण के दिव्यरूप में ध्यान एकाग्र करने से मनुष्य कृष्ण के चिन्तन में तन्मय हो जाता है और तब उनके दिव्य सान्निध्य की सुखी अवस्था को प्राप्त होता है |”
इस युग में कृष्ण के विचार में लीन होने का सबसे आसान तरीका है कि जितना हो सके हमेशा उनके पवित्र नाम का जप करें। इस सरल विधि को अपनाने से व्यक्ति सभी अस्तित्व के स्रोत भगवान श्री कृष्ण की व्यक्तिगत संगति को जल्दी और आसानी से प्राप्त कर लेगा।
संकर्षण दास अधिकारी
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 6, श्लोक 31 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
कृष्ण की संगति के अलावा कोई भी संग पूरी तरह से संतोषजनक क्यों नहीं है?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)