जब कोई कृष्णभावनामृत में स्थिर होता है तो उसे और कुछ भी आकर्षक नहीं लगता क्योंकि बाकी सब कुछ स्पष्ट रूप से दिखता है कि वह वास्तव में निम्न गुणवत्ता का है। आखिरकार, जब वह एक ऐसे आनंद का स्वाद चख रहा है जो असीम रूप से बेहतर है, तो वह निम्न श्रेणी के आनंद के लिए नीचे क्यों गिरना चाहेगा? ऐसा करने की कोई बाध्यता नहीं होगी। यह कृष्णभावनामृत है, जो मूल प्राचीन चेतना का प्राकृतिक पुन: जागरण है, जो कि भीतर ही साथ रही है, जब हम जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति में झूठा सुख धुँध रहे थे। यह प्रामाणिक गुरु की दया से पुनर्जीवित होता है और भगवान के भक्तों की संगति द्वारा बनाए रखा और मजबूत किया जाता है।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 6, श्लोक 19 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
भक्त का मन वायुहीन स्थान में दीपक के समान क्यों होता है?
सकती से शाकाहारी आहार के विपरीत केवल कृष्ण प्रसादम का आहार लेना क्यों आवश्यक है?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)