पाठ 135: शैक्षणिक और वास्तविक ज्ञान

शैक्षणिक जगत में कई विद्वान हैं जो वैदिक ज्ञान का अध्ययन करते हैं। उनमें से कुछ संस्कृत में बहुत ज्ञाता हैं। लेकिन जब वे कृष्णभावनामृत व्यक्ति का आश्रय नहीं लेते, उनका वैदिक ज्ञान हमेशा शैक्षणिक ही रहेगा। दूसरे शब्दों में, वे वेदों के आंतरिक अर्थ को महसूस नहीं करेंगे। भागवद-गीता 15.15 में भगवान कृष्ण ने कहा है कि सभी वैदिक साहित्य का एकमात्र उद्देश्य उन्हें समझना है। इसलिए जो कोई भी वैदिक ज्ञान के अपने अध्ययन से कृष्णभावनामृत नहीं हुआ है, उसकी तुलना उस व्यक्ति से की जाती है, जो शहद की शीशी को बाहर से चाट रहा है, और जिसे कभी शहद का स्वाद जो शीशी के अंदर है वह कभी मिला नहीं। मृत्यु के समय शैक्षणिक ज्ञान हमें नहीं बचाएगा। इसलिए सभी विद्वानों को सलाह दी जाती है कि वेदिक ज्ञान का वास्तविक अर्थ और उद्देश्य क्या है, इसका एहसास करने के लिए कृष्ण के शुद्ध भक्त से मार्गदर्शन लें।

इस सप्ताह के लिए कार्य

भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 6, श्लोक 8 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
वेदों के शैक्षणिक ज्ञान और वैदिक ज्ञान को एहसास करने के बीच क्या अंतर है? वैदिक ज्ञान का एहसास कैसे होता है?

अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com

(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)