हर किसी को संतुष्टि की आवश्यकता होती है क्योंकि संतुष्टि के बिना जीवन असहनीय है। हमारे तथाकथित आधुनिक सभ्यता के साथ समस्या यह है कि वह
हमें अपनी संतुष्टि उन चीजों से प्राप्त करना सिखाती है जो अंततः असंतोषजनक होती हैं। इसलिए यह बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग इतने निराश और हतप्रभ हैं और पूरी वैश्विक सभ्यता धीरे-धीरे बिखर रही है। इस असंतोष की खाई का आसान समाधान यह है कि हमें किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करें जो वास्तविक संतुष्टि की कला जानता हो और उससे सीखे कि कैसे तथ्यात्मक रूप से संतुष्ट हो सकते है। वह तथ्यात्मक संतुष्टि क्या है? अपनी वास्तविक पहचान से जुड़ना – सर्वोच्च व्यक्ति के पूर्ण आनंद और ज्ञान से भरा सेवक। यदि कोई स्थायी संतुष्टि चाहता है, तो उसे संतुष्टि के इस मार्ग को स्वीकार करना चाहिए। और जैसे ही वह इस मार्ग को स्वीकार करता है, तों वह परम आनंद से पूरे मानव समाज की सेवा करता है इस संतोष के विज्ञान को सबके साथ बाट कर।
इस सप्ताह के लिए कार्य
भगवद-गीता यथा रूप अध्याय 5, श्लोक 23 को ध्यान से पढ़ें और इस प्रश्न का उत्तर दें:
इंद्रियों की सेवा इतनी असंतोषजनक क्यों है?
अपना उत्तर ईमेल करें: hindi.sda@gmail.com
(कृपया पाठ संख्या, मूल प्रश्न और भगवद गीता अध्याय और श्लोक संख्या को अपने उत्तर के साथ अवश्य शामिल करें)